जोधपुर की मूल निवासी और वर्तमान में अहमदाबाद में रह रही बाल कलाकार ताशी ने 10 साल की उम्र में आरंगेत्रम की प्रस्तुति से खूब तालियां बटोरी। ताशी ने अहमदाबाद के अम्बावाडी में स्थित कलामंदिर प्रदर्शन कला की गुरु बिनल वाला के मार्गदर्शन में अपना सात साल का प्रशिक्षण पूरा किया। तीन-साढ़े तीन साल की छोटी उम्र में जब बच्चे ठीक से चल भी नहीं पाते तब ताशी ने अपना संजीदा प्रशिक्षण शुरू किया। इतनी कम उम्र में बहुत कम गुरु छात्रों को स्वीकार करते हैं। बिनल वाला ने इस चुनौती को स्वीकार किया और सिद्ध किया कि कला ईश्वर की देन है और इसे किसी भी उम्र में विकसित किया जा सकता है। भारतीय शास्त्रीय परंपराओं के सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक आरंगेत्रम है। आरंगेत्रम वो अवसर है जब गुरु अपने छात्र को भगवान नटराज और समाज के सामने कलाकार के रूप में पेश करता है। आरंगु का अर्थ है मंच और एट्टम का अर्थ है ऊपर चढ़ना। ये वो समय होता है जब गुरु छात्र को मंच पर प्रदर्शन करने की अनुमति देता है और कलाकार होने का प्रमाण पत्र भी देता है। ये कलाकार के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जब वो छात्र से कलाकार में बदल जाती है। आधुनिक दुनिया में हम इसे पदवी दान समारोह के समान ही देख सकते हैं।